ये हुसैनी ब्राम्हणों का देश है रे संघियों, तुम्हारी नफ़रत न चलेगी यहाँ
जी मुहर्रम में हर साल शिया मुसलमान ताज़िये उठाते हैं. कैसा लगेगा अगर आपको बताऊँ मैं कि तमाम ब्राम्हण भी. जी हाँ, ये मुल्क़ पंडितों के ताज़ियों का भी मुल्क़ है. मोहियाल ब्राम्हण। हुसैनी पंडित। हुसैनी ब्राम्हण। हुसैनी पंडित।मोहियाल। जो भी कहिये उन्हें। सच ये कि इमाम हुसैन के लिए जान देने वाली क़तार में वे भी खड़े थे.
कहानियाँ तमाम हैं. जितना सच साफ़ है वो ये कि इमाम हुसैन केलिए कर्बला में लड़ने वालों में ये ब्राम्हण भी थे, मक्का में व्यापार करने वाले पंडित, इमाम हुसैन के भक्त.मक्का उस वक़्त का बड़ा व्यापार केंद्र था सो सारी दुनिया के लोग जाते थे. उन्हीं में से एक थे सिद्ध दत्त।अफगानिस्तान के बड़े इलाके पे राज करने वाले।
पहली कहानी यह है कि उन्होंने अपने सात, जी पूरे 7 बेटों के साथ कर्बला में इमाम हुसैन के लिए क़ुरबानी दी उस कमजर्फ़ यज़ीद की फ़ौज से लड़ते हुए मारे गए।
दूसरी कहानी ये है कि सिद्ध दत्त को जब पता चला कि इमाम हुसैन को यज़ीद की फ़ौजों ने घेर लिया है तब वे अपने सातों बेटे और बाक़ी साथी लेकर भागे- पर इमाम हुसैन को बचा ना पाए! इमाम उनके आने के पहले ही क़त्ल हो चुके थे। पर उन्होंने हार नहीं मानी, हत्यारे यज़ीद की फ़ौज को दौड़ाया- जो इमाम का सर भी लेकर भाग निकले थे और आख़िर में सर वापस हासिल कर लिया, क़ूफा में यज़ीद की फ़ौज से वापस छीन के, पूरी इज़्ज़त से दफ़न को।
कहते हैं कि यज़ीद की फ़ौज ने फिर वापस घेर लिया सिद्ध दत्त को- इमाम हुसैन का सर वापस लेने को। वो जानता था कि दफ़न हुए, तो हमेशा के लिए एक जगह बन जाएगी उसे चुनौती देने वाली! सिद्ध दत्त के 7 बेटे थे। असल कहानी दरअसल शुरू ही यहीं से हुई थी- सिद्ध दत्त को कोई बेटा ना था जब उन्होंने इमाम हुसैन से बेटे की भीख माँगी थी। हुसैन ने उन्हें देखा और कहा कि तुम्हारे नसीब में कोई बेटा है ही नहीं! सिद्ध दत्त गिर पड़े! इमाम को दया आयी। बोले जाओ, एक बेटा होगा! बग़ल में एक मुसलमान खड़ा था- उसने इमाम को ललकारा- आप अल्लाह की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जा रहे हैं! इमाम हुसैन ने पहले उसे देखा फिर तड़पते सिद्ध दत्त को। बोला एक बेटा और दिया। मुसलमान ने फिर ऐतराज़ किया! और ऐसा करते करते इमाम ने सिद्ध दत्त को 7 बेटे दे दिए!
सो यज़ीद की फ़ौज ने क़ूफा में वापस घेरा तो सिद्ध दत्त के पास सातों बेटे थे- कोई रास्ता ना था! पहली माँग पे सिद्ध दत्त ने पहले बेटे का सर काट कर दे दिया!! यज़ीद के लोगों ने कहा ये हुसैन नहीं- सो दूसरे का!! काट के देते गए- सातों बेटों का! इमाम का बचा लिया!! फिर उसे दमस्कस में दफ़नाया! पर इतने भर पे माने नहीं दत्त, लड़ते रहे। वे अमीर मुख़्तार सकाफी की फ़ौज के साथ लदे, तब तक जब तक यज़ीद के गवर्नर ओबैदुल्लाह इब्न ज़ायद को भगा के क़ूफा वापस ना छीन लिया!
सिद्ध दत्त ने उसके बाद अरब छोड़ दिया- सात बेटों की लाश का बोझ बड़ा ना था, इमाम हुसैन की शहादत का दर्द ना संभला उनसे। पर अमीर मुख़्तार ने हाथ पाँव जोड़ के कुछ को रोक लिया- भूर्या दत्त के नेतृत्व में जो रुके उनके इलाक़े का नाम आज भी दैर ए हिंदिया है- हिंदुस्तान वालों का ठिकाना- क़ूफा, इराक़ में!
कहते हैं कि सुनील दत्त उन्हीं मोहियालों के वंशज थे। ये भी कि मोहियाल आज भी गले पर चीरा लगते हैं, इमाम हुसैन की शहादत याद रखने को। जो भी हो पर इतना तो सच है कि क़ूफा में आज भी दैर ए हिंदिया है!