बभनान से बैंकाक और अयोध्या से अयुथया तक

अयुथया? ये कहाँ है थाईलैंड में? जहाज में बगल बैठे ‘टूरिस्ट’ से ये सवाल न भी सुना होता दरअसल तो भी आश्चर्य नहीं होता। रोज हिंदुस्तान से थाईलैंड आने वाले हजारों लोगों में से कितने जानते होंगे ऐसे कस्बों का नाम- भले ही वो फिर बैंकाक से सिर्फ 80 किलोमीटर दूर क्यों न हो. एक तो अपनी तरफ अमूमन थाईलैंड जाने का मतलब बैंकाक और पटाया (स्थानीय अंदाज में पतइया) जाना होता है, और वह भी खास वजहों से. दूसरे माज़ी से, इतिहास से हमारा रिश्ता कभी बहुत करीब का नहीं रहा- इस कदर कि हम अपनी पर आ जाएँ तो सिकंदर को गंगा तट पर हरा भी सकते हैं और भगत सिंह को काला पानी भी भेज सकते हैं!
बखैर- अयुथया बोले तो फ्र नखोन सी अयुथया। अयुथया! यूनेस्को से प्रमाणित विश्व धरोहर शहर.
थाईलैंड का सिमरीप – थाईलैंड का अंगकोर वाट. अच्छा ठीक है- उस स्तर पर भव्य नहीं, उतना पुराना भी नहीं और उतना संरक्षित भी नहीं- पर फिर जाएगा तो उसी के करीब जाएगा। दर्जनों भव्य मंदिर, असल में वाट, एक बड़ा सा चर्च और मस्जिद वाला कस्बाई सा शहर अद्भुत है- और भी अद्भुत अगर आप चारो तरफ से नदी से घिरे इस शहर में उतरती शाम को नाव से देखें- मंदिरों पर बरसती सुनहली किरणें, स्टिल्टेड (नदी/पानीज़मीन- कहीं भी खम्भों पर बनाये गये) घर और शानदार हवा- इस शहर से इश्क़ न हो जाए तो कहियेगा।
“फ्र” बोले तो थाई में संस्कृत के “देव”, “नखोन” हुआ “नगर” “सी” शब्द श्री और “अयुथया” शब्द रामायण की अयोध्या नगरी। बोले तो “फ्र नखोन सी अयुथया” हुआ थाई में “देव नगरी श्री अयोध्या”। बोले तो जिस अयोध्या किनारे हम पले बढ़े, जिसकी मिट्टी में पुरखों की राख शामिल है, उस अयोध्या से तमाम समन्दर दूर अपना नाम लेने वाला एक छोटा सा क़स्बा। हाँ, ये क़स्बा हमेशा से छोटा नहीं था- और छोटे कि तो छोड़िये ही, जो 17वीं शताब्दी में दुनिया का सबसे बड़ा शहर था! 10 लाख की आबादी के साथ। जो कभी सियाम साम्राज्य की राजधानी था। जो फिर बर्मा के आक्रमणकारियों द्वारा नेस्तनाबूत कर दिया था। जो बचा था फिर जला दिया गया था। जो अब बताता है कि ज़मींदोज़ होने के बाद इतना बाक़ी है तो जब रहा होगा तो क्या रहा होगा।
यूँ तो अयुथया की आधिकारिक स्थापना 1351 में राजा यू थॉन्ग उर्फ रामाथिबोधि ने की- पर तमाम शिलालेख इशारा करते हैं कि शहर पहले से रहा होगा। और हाँ- रामाथिबोधि से याद आया कि थाईलैंड के राजा अपने को भगवान राम का अवतारा मानते हैं- 2014 में दुनिया बदल जाने के सैकड़ों साल पहले से. 1782 से अभी जो राजवंश चल रहा है वह खुद ही राम 1 से राम 9 तक पहुँच आया है. 1767 में बर्मा के हमलावरों द्वारा पूरा शहर लूट के जला दिए जाने तक बीच में कंबोडिया से शुरू कर बर्मा तक में प्रभाव रखने वाला बहुत बड़ा शहर रहा.बहुत सारे फॉरेन क्वार्टर्स के साथ- पुर्तगाली, जापानी, फ्रांसीसी-.
खैर, अंगकोर वाट देख चुके होने के बाद मैंने अपनी उम्मीद कम रखी थी- पर आप ये गलती न करियेगा। और अंगकोर वाट माने कंबोडिया यात्रा में शामिल न हो तो बिलकुल भी नहीं!
एयर होस्टेस ने ‘डिसेंट’ शुरू होने की घोषणा कर दी थी. बैंकाक नीचे दिखने लगा था. अयोध्या के छोरे को थाईलैंड की अयोध्या में पहुँचने में कुछ ही देर बाकी थी- एक नए देश से इश्क़ की शुरआत को भी. उड़ानों की उद्घोषणाएं याद हो आयीं थीं- हम अयुथया, सुफानबूड़ी, कंचनाबूड़ी, हेल फायर पास और पट्टाया होते हुए बैंकॉक जाएंगे- सफर थोड़ा भारी होगा, अयुथया और कंचनाबूड़ी दोनों की कहानी दो बहुत बड़े युद्धों और उनसे भी बड़ी तबाही की कहानी है पर- पहला बता ही दिया और दूसरा थाई बर्मीज रेलवे नाम के उस कहर की जो जापानियों ने दूसरे विश्वयुद्ध में नाज़िल किया था- हो सके तो वो शानदार फिल्म देखियेगा कभी- ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई- स्पॉइलर अलर्ट: असल में क्वाई नाम की कोई नदी है नहीं, वो ब्रिज ज़रूर है- उस का नाम दो अलग अलग नदियों का नाम जोड़ के बना दिया था.
पर फिर ये कहानी जीवट की, प्रतिरोध की, संघर्ष की, फिर से उठ खड़े होने की कहानी भी है. आइये आपको साथ घुमाते हैं.
और कभी इधर घूमने की योजना बने तो सलाह ले सकते हैं- मानने न मानने को लेकर कोई ज़िद नहीं है.